श्री खाटू श्याम जी की सम्पूर्ण जानकारी व इतिहास - ( Shree khatu shyam ji ki sampurn jankari wa itihash )

 

  श्री खाटू श्याम जी की सम्पूर्ण जानकारी व इतिहास 

हेलो दोस्तो आज के इस लेख में हम आपको खाटू श्याम जी के बारे में बताएँगे| अगर आप को खाटू श्याम मंदिर कैसे जाये, रुकने व खाने की व्यवस्थता, दर्शन का समय या आरती का समय के बारे में जानना है तो आप हमारे दूसरे लेख में पढ़ सकते है. श्री खाटू श्याम मंदिर के दर्शन व यात्रा की जानकारी यहाँ क्लिक कर के जानकारी ले सकते है | 



कैसे बने बर्बरीक श्री खाटूश्याम जी

श्री श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे अति बलशाली गदाधारी भीम और माता अहिलावती के पौत्र हैं। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे।महादेव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये; इस प्रकार तीन बाणधारी के नाम से प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया।

महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुआ तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। वे अपनी माता के पास गए और बोले मुझे भी महाभारत का युद्ध करना है तो उनकी माता बोली पुत्र तुम किसकी तरफ से युद्ध करोगे । तब उन्होंने बोला में हारे हुए की तरफ से युद्ध करुगा। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँचे तब माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया और वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े। सर्वव्यापी श्री कृष्ण ने ब्राह्मण भेष धारण कर बर्बरीक का भेद जानने के लिए उन्हें रोका और उनकी बातों को सुनकर उनकी हँसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आए है; ऐसा सुनकर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिए पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तूणीर में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा। 

यह जानकर भगवान् कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ। वे दोनों पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तूणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया। बाण ने क्षणभर में पेड़ के सभी पत्तों को वेध दिया और श्री कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था; बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए अन्यथा ये बाण आपके पैर को भी वेध देगा। तत्पश्चात, श्री कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा; बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन को दोहराया और कहा युद्ध में जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा उसी को अपना साथ देगा। श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है और इस कारण अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा। 

अत: ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की। बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया और दान माँगने को कहा। ब्राह्मण ने उनसे शीश का दान माँगा।बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अन्त तक युद्ध देखना चाहते हैं। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण ने इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया। उनके शीश को युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया; जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये। श्री कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि उस युग में हारे हुए का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है



उनका शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में दफ़नाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सूपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था।

श्री खाटू श्याम जी के अन्य नाम 

श्री खाटू श्याम जी का बाल्यकाल में नाम बर्बरीक था। उनकी माता, गुरुजन एवं रिश्तेदार उन्हें इसी नाम से जानते थे। श्याम नाम उन्हें कृष्ण ने दिया था। इनका यह नाम इनके घुंघराले बाल होने के कारण पड़ा। बाबा श्याम को श्याम बाबा, तीन बाण धारी, नीले घोड़े का सवार, लखदातार, हारे का सहारा, शीश का दानी, मोर्वीनंदन, खाटू वाला श्याम, खाटू नरेश, श्याम धणी, कलयुग का अवतार, कल्युग के श्याम, दीनों का नाथ आदि नामों से भी पुकारा जाता है


हारे के सहारे बाबा खाटू श्याम 



खाटू श्याम अर्थात मां सैव्यम पराजित:। अर्थात जो हारे हुए और निराश लोगों को संबल प्रदान करता है। खाटू श्याम बाबा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हैं उनसे बड़े सिर्फ श्रीराम ही माने गए हैं। खाटूश्याम जी का जन्मोत्सव हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। खाटू का श्याम मंदिर बहुत ही प्राचीन है, लेकिन वर्तमान मं‍दिर की आधारशिला सन 1720 में रखी गई थी। इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के मुताबिक सन 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था। खाटू श्‍याम मंदिर परिसर में लगता है बाबा खाटू श्याम का प्रसिद्ध मेला। 

हिन्दू मास फाल्गुन माह शुक्ल षष्ठी से बारस तक यह मेला चलता है। ग्यारस के दिन मेले का खास दिन रहता है। बर्बरीक देवी के उपासक थे। देवी के वरदान से उसे तीन दिव्य बाण मिले थे जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस उनके पास आ जाते थे। इसकी वजय से बर्बरिक अजेय थे। बर्बरीक अपने पिता घटोत्कच से भी ज्यादा शक्तिशाली और मायावी थे । कहते हैं कि जब बर्बरिक से श्रीकृष्ण ने शीश मांगा तो बर्बरिक ने रातभर भजन किया और फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान करके पूजा की और अपने हाथ से अपना शीश काटकर श्रीकृष्ण को दान कर दिया। शीश दान से पहले बर्बरिक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्‍छा जताई तब श्रीकृष्‍ण ने उनके शीश को एक ऊंचे स्थान पर स्थापित करके उन्हें अवलोकन की दृस्टि प्रदान की।

युद्ध समाप्ति के बाद जब पांडव विजयश्री का श्रेय देने के लिए वाद विवाद कर रहे थे तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इसका निर्णय तो बर्बरिक का शीश ही कर सकता है। तब बर्बरिक ने कहा कि युद्ध में दोनों ओर श्रीकृष्ण का ही सुदर्शन चल रहा था और द्रौपदी महाकाली बन रक्तपान कर रही थी।
अंत में श्रीकृष्ण ने वरदान दिया की कलियुग में मेरे नाम से तुम्हें पूजा जाएगा और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा। स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट हुए थे और श्रीकृष्ण शालिग्राम के रूप में मंदिर में दर्शन देते हैं।


युद्ध के बाद

युद्ध के बाद बर्बरीक द्वारा पाण्डवों के अभिमान का मर्दन हुआ और उसके बाद उनके शीश को रूपवती नदी में प्रवाहित किया गया। शीश बहता हुआ खाटू नामक गांव में पहुंच गया इसके बाद रूपवती नदी सुख गई और बर्बरीक का शीश वहीं दबा रह गया। उसके कई वर्षों बाद राधा नामक एक गाय थी वह गाय दूध देने में असमर्थ थी इसी कारण उसके मालिक ने उसे छोड़ दिया। गाय घूमते हुए उस स्थान पर पहुंची जहां बर्बरीक का शीश दफन था। वहां पहुंचते ही उसके थनों से दूध बहने लगा। जिसके बाद खाटू के राजा को जब इस बात का पता चला तो वे स्वयं वहां गए और वहां खुदाई करके उन्हे एक शीश दिखा जिसके पश्चात आकाशवाणी हुई कि यह ज्येष्ठ घटोत्कच पुत्र बर्बरीक का शीश है जिसे श्री कृष्णचन्द्र द्वारा उनके श्याम नाम से पूजे जाने का वर है। ये कलयुगी कृष्ण हैं। इनके लिए विशाल मंदिर का निर्माण करवाओ। आकाशवाणी के कुछ दिनों बाद मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और देवउठनी एकादशी के दिन बर्बरीक के उस शीश की स्थापना मंदिर में हुई और वे बर्बरीक से खाटू श्याम बन गए। इसी कारण देवउठनी एकादशी के दिन बाबा श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाता है।



हिन्दू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम जी ने द्वापरयुग में श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलयुग में उनके नाम श्याम से पूजे जाएँगे। श्री कृष्ण बर्बरीक के महान बलिदान से काफ़ी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि जैसे-जैसे कलियुग का अवतरण होगा, तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे। तुम्हारे भक्तों का केवल तुम्हारे नाम का सच्चे दिल से उच्चारण मात्र से ही उद्धार होगा। यदि वे तुम्हारी सच्चे मन और प्रेम-भाव से पूजा करेंगे तो उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी और सभी कार्य सफ़ल होंगे।




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